क्या तुम भी राम हो?

इस कविता में भगवान राम की दया, विनम्रता, वीरता और पीड़ा पर भी प्रकाश डाला गया है।

प्रस्तावना: निम्नलिखित कविता भगवान राम को अर्पण है। कविता में भगवान राम की दया, विनम्रता, वीरता और पीड़ा पर भी प्रकाश डाला गया है। कई बार भगवान राम की आधुनिक परिभाषा जानके आश्चर्य होता है जब एक बेकाबू भीड़ द्वारा किसी को मौत के घाट उतारते हुए ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए जाते हैं। जय श्री राम का जाप करते हुए गुंडों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने की भी घटनाएं आश्चर्यचकित कर देती हैं। इस कविता के माध्यम से समाज को एक आईना दिखाया जा रहा है। यह लोगों को राम की विचारधारा पूर्णताः समझाने का एक प्रयास है। मुझे आशा है कि रामभक्त अपने भीतर के राम को जगाएंगे और राम की उस झूठी आधुनिक छवि का त्याग करेंगे, जहाँ श्री राम गुण से खलनायक हैं और उन्हें किसी को बेवजह नुकसान पहुंचाने के लिए उकसाते हैं।

क्या प्रिया से जीवन-मरण का नाता है,
क्या छल और कपट तुम्हारे शत्रु को ही भाता है,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या सत्ता से ऊपर समाज के कल्याण को रखते हो,
क्या तुम भी शभरी के झूठे बैर चखते हो,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या समाज का भवंडर तुम्हे भी फसाता है,
क्या निर्भल पर किया प्रहार तुम्हारे क्रोध को उकसाता है,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या तुमने स्री का मान रखा,
क्या तुमने राज का दान किया,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या षड़यंत्र ने झकड़ा तुम्हे,
क्या प्रेम की राह मिली तुम्हे,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या माँ की बात टाली नहीं जाती,
क्या औरों की पीड़ा सही नहीं जाती,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या मुस्कान तुम्हारी भी सूर्य उदय सी है,
क्या पहचान तुम्हारी भी कोमल हृदय की है,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या लोक व्यवहार का मान रखते रहे हो,
क्या स्वयं को ही त्यागकर फूंकते रहे हो,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या भ्राता का प्रेम तुम्हारी ढाल है,
क्या पत्नी की शक्ति और मनोबल कमाल है,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या स्वर्ण हिरन की माँग उठ गयी है,
क्या दीप जलने की परिस्थति बन गयी है,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या तुम्हारे लौट आने पर भी उत्सव होगा,
क्या दीप जलेंगे, जलसा होगा,
तो क्या तुम भी राम हो?

क्या कोई दीपावली तुम्हारी भी प्रतीक होगी,
क्या फल, पेड़, मानव, पशु, भूमि, गगन तुम्हारे आगमन का हिस्सा होंगे,
तो क्या तुम भी राम हो?

हाँ, तुम ही तो राम हो,
तुमने ही तो मर्यादा का परिचय कराया,
विजय का ध्वज लहराया,
शक्ति का मान रखा, मीरा का झूठा बेर चखा,
हाँ, तुम ही तो राम हो।

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